तीर्थराज पुष्कर

तीर्थराज पुष्कर के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी

तीर्थराज पुष्कर

पुष्कर का विस्तृत रुप से वर्णन पद्मपुराण में मिलता है

पुष्कर का विस्तृत रुप से वर्णन पद्मपुराण में मिलता है पद्मपुराण के अनुसार ब्रह्मा जी ने यज्ञ करने का विचार किया। यज्ञ की भूमि चयन के लिए कमल के पुष्प को पृथ्वी पर गिराया गया। कमल का पुष्प सम्पूर्ण पृथ्वी का भ्रमण करते हुए जहाँ पर आज पुष्कर है वहां पर गिरा। एक स्थान पर गिरकर वापस उछलकर दुसरे स्थान पर एवं वापस उछलकर तीसरें स्थान पर गिरा। इस प्रकार कमल का पुष्प तीन स्थानों पर गिरा। इन तीनों स्थानों पर जल की निर्मल धारा प्रवाह हुआ। यह तीनों स्थान प्रथम ब्रह्मपुष्कर,द्वितीय विष्णु पुष्कर, तीसरा रुद्र पुष्कर नाम से विख्यात हुआ। जगत पिता ब्रह्मा ने यहाँ पर यज्ञ किया। ब्रह्मा जी ने यहाँ पर यज्ञ का शुभारंभ कार्तिक एकादशी से प्रारम्भ कर कार्तिक पूर्णिमा तक किया ।इस कारण प्रतिवर्ष कार्तिक एकादशी से पूर्णिमा तक पुष्कर में भारी मेला भरता है। लाखों की संख्या में इन पांच दिनों में श्रद्धालु पुष्कर झील में डूबकी लगाकर ईश्वर से प्रार्थना करते है कि उन्हें मोक्ष प्राप्त हो। धर्म शास्त्रों में पांच तीर्थों को परम पवित्र माना गया है। पुष्कर, कुरुक्षेत्र, गया,हरिद्वार, ओर प्रयाग। पुष्कर की भूमि पर अत्रि, वशिष्ठ, कश्यप, गौतम, भरद्वाज, विश्वामित्र, जग्दग्नि जैसे ॠषि-मुनियों ने तपस्या की।

पुष्कर को तीर्थराज माना जाता है। यानि यह सभी तीर्थों का राजा हैं। पुष्कर झील का पानी परम पवित्र माना गया है। जो व्यक्ति को मोक्ष प्रदान करता है। इसके पानी में अनेक औषधिय गुण है। रामायण महकाव्य में पुष्कर का उल्लेख मिलता है।

विश्वमित्रोऽपि धर्मात्मा भूयस्तेपे महातपाः ।
पुष्करेषु नरश्रेष्ठ दशवर्षशतानि च ।।

पुष्कर तीर्थ में ब्रह्मर्षि विश्वमित्र ने तप किया तथा मेनका ने पुष्कर के पावन जल में स्नान किया। महाकाव्य महाभारत में भी पुष्कर तीर्थ की महिमा का गुणगान किया गया है।

दशकोटि सहस्त्राणि तीर्थांना वें महामतेः ।
सानिध्य पुष्करे येषा त्रिसंध्य कुरु नन्दनः ।।

महाभारत के अनुसार दस करोड़ तीर्थ पुष्कर तीर्थ में अवस्थित हैं । पुष्कर में स्नान, दान, ध्यान, संध्या, श्राद्ध, तर्पण, ओर तप करने पर उसका पुण्य अक्षय हो जाता है। सृष्टि के रचियता ब्रह्मा जी का मंदिर पुष्कर में बना हुआ है। ऐसी मान्यता है कि जगद्गुरु श्री आदि शंकराचार्य ने संवत 713 में पुष्कर में ब्रह्मा जी के विग्रह की स्थापना की। पुष्कर के ब्रह्मा मन्दिर का वर्तमान स्वरूप गोकुल चन्द पारेख ने 1809 ई में दिया। यहां पर ब्रह्मा का विग्रह चार मुख वाला है। पुष्कर मे पांच सौ मन्दिर तथा सरोवर पर 52 घाट है । पुष्कर में कार्तिक मास में ऊॅटों का मेला लगता है। जिसमें ऊँटों का क्रय-विक्रय होता हैं। पुष्कर का ऊँटों का पशु मेला विदेशियों के आकर्षण का केंद्र हैं ।

पुष्कर का वर्णन हमें मत्स्यपुराण, हरिवंश पुराण, अग्नि पुराण, कुर्म पुराण, स्कन्ध पुराण, वायु पुराण, गुरूड़ पुराण, सहित , शंखस्मृति, निर्णय सिन्धु में मिलता हैं ।जैन,बौद्ध व तन्त्र ग्रन्थों ने भी पुष्कर तीर्थ का गुणगान किया । 52 शक्ति पीठों में से एक शक्ति पीठ पुष्कर की भूमि पल स्थिति है जिसे गायत्री शक्ति पीठ कहा जाता है। जिस पर्वत पर गायत्री शक्ति पीठ स्थित है उस पर्वत को मणिबन्ध (मणिवेदिका) पर्वत कहा जाता है। मणिबन्ध पर्वत पर गायत्री माता का देवालय बना हुआ है। यहां पर देवी सती के दोनों हाथों के कंगन गिरने की मान्यता है। किसी किसी ग्रन्थ में ‘कलाईयां’ गिरने की बात कही गई है। इस शक्ति पीठ की अधिष्ठात्री देवी को गायत्री के रुप में पुजा जाता है। देवी सती के साथ विराजमान शिव या भैरव भगवान सर्वानन्द के नाम से पुजे जाते हैं। इस शक्ति पीठ को मणि वेदिका शक्ति पीठ कहा जाता है। इस पीठ के दर्शन करने से सद्गति की प्राप्ति होती है। गुज॔रगोङ ब्राह्मण समाज के एक आवंटक की कुलदेवी छतसहाय हैं। छतसहाय देवी गायत्री ही है। छत अर्थात ऊपर से ढका हुआ भाग, इसका एक अन्य भाव छत्र भी है। जो छाया देता है। दुर्गा सहस्त्र नाम में छत्रदाता अर्थात उपासक गण जिसके चलते समय मस्तक पर छत्रता में रहते है। छत्र धरा अर्थात छत्र धारण करने वाली माता शब्द का प्रयोग गायत्री के लिए किया गया है।

छत्रयाता छत्रधरा छाया छन्दः परिच्छदा (दुर्गा सहस्त्र नाम 53)

गुर्जर करण नरेश के लिए महर्षि गौतम ने अपने 156 शिष्यों के साथ पुष्कर आकर पुत्रेष्ठि यज्ञ किया। राजा गुर्जर करण महर्षि गौतम के 156 शिष्यों को 156 गाँव दक्षिणा में दिये। गुज॔रगोङोत्पत्तिभास्कर में इस प्रकार से दोहें मिलते हैं।

यज्ञ कियो गुर्जरपति, पुत्र होन के काज ।
आचारज गौतम भये,रहे जो विप्र समाज। ।1।।

तिनमहँ जेते शिष्य थे, तिनकों दिये अधिकार।
ऋत्विग् होता ब्रह्म पुनि,उपदेष्टि जु विचार ।।2।।

राजन कीनी बरणि पुनि,चौरासी सुत केर ।
पुनि जो बहत्तर बचरहे,उपस्कृत्य कह्यो टेर ।।3।।

अग्निकुण्ड के ओर चहुँ,बैठे सब द्विजराय ।
चौरासी सासन भये,द्वीसत छोड कहाय। ।4।।

कुण्डदृष्टि दे चहुँ दिशहिं,बैठे विप्र इकतीस।
ते चौकी सासन तहां,चार मन्त्रि अरु ईस ।।5।।

मारवाड़ मण्डोर के राजा नाहड़ राव प्रतिहार थे। जिनका शासन 600ई माना जाता है। नाहड़ राव को एक असाध्य रोग हो गया था। जिसके निवारण के लिए गुज॔रगोङ ब्राह्मण समाज के पण्डित श्री छांछोराजी से उपाय पुछा। छांछोराजी ने राजा को कहा कि आप पुष्कर में यज्ञ कर पुष्कर सरोवर स्नान कीजिये ।राजा ने पुष्कर में छांछोराजी के आचार्यत्व यज्ञ सम्पन्न कर पुष्कर सरोवर में स्नान किया। जिसके कारण राजा का असाध्य रोग समाप्त हो गया। इस पर नाहड़ राव ने पुष्कर सरोवर की खुदाई करवाई तथा सरोवर पर घाट व धर्मशालाओं का निर्माण करवाया। राव नाहड़ ने गुज॔रगोङ ब्राह्मण को सिरमौर की उपाधि प्रदान की।

नाहड़ राजा बोलियो,तुम ब्राह्मण सिरमौड़ ।
गुर्जरेश गौतम पुजे,ताते गुज॔रगोङ। ।